अक्टूबर तालिक 2025
October Tableगरीब दास साहेब
(साखी)॥ ॥(साखी)-॥
सब पर्वत स्याही करूँ घोलूँ समुंदर जाय धरती का कागद करूँ गुरु अस्तुति न समाय
गुरु मग दृढ़ पग राखिये डिग मिग डिग मिग छाँड 'सहजो' टेक टरै नहीं सूर सती जो माँड
ज्ञान भक्ति अरु जोग का घट लेवै पहँचान जैसी जाकी बुद्धि है सोइ बतावै ध्यान
प्रेम दिवाने जो भये, मन भयो चकना चूर। छके रहे घूमत रहैं, सहजो देखि हज़ूर॥
प्रेम लटक दुर्लभ महा, पावै गुरु के ध्यान। अजपा सुमिरण कहत हूं, उपजै केवल ज्ञान॥
अड़सठ तीरथ गुरु चरण, परवी होत अखंड। सहजो ऐसो धामना, सकल अंड ब्रह्मंड॥
गुरुवचन हिय ले धरो, ज्यों कृपणन के दाम। भूमिगढ़े माथे दिये, सहजो लहै न राम॥
मन में तो आनंद है, तनु बौरा सबअंग। ना काहू के संग है, सहजो ना कोई संग॥
जो आवै सत्संग में, जात वर्ण कुलखोय। सहजो मैल कुचील जल, मिलै सुगंगा होय॥
रंचक नाम सँभारिये परपंची कूँ खोय । अंत समय आनंद है अटल भगति देउँ तोय ।।
सब तीरथ गुरु के चरन, नितही परवी होय। सहजो चरणोदक लिये, पाप रहत नहिं कोय॥
साधु मिले गुरुपाइयां, मिट गये सब संदेह। सहजों कोसम हो गयो, कह गिरिवर कह गेह॥
हरि किरपा जो होइतो, नाहिं होइतो नाहिं। पै गुरु किरपा दया बिनु, सकल बुद्धि बहि जाहिं॥
यह मन मंजन कीजिये रे नर बारंबार । साईं से कर दोसती बिसर जाय संसार ।।
गुरुहैं चारि प्रकार के, अपने अपने अंग। गुरुपारस दीपक गुरू, मलयागिरिगुरुभृंग॥ चरणदास समरत्थ गुरु, सर्व अंग तिहिमाहिं। जैसे को तैसा मिलै, रीता छौड़े नाहिं॥
सहजो संगति साधु की, छूटे सकल वियाध। दुर्मति पाप रहै नहीं, लागै रंग अगाध॥
सहजा साधन के मिले, मन भयो हरि के रूप। चाह गई थिरता भई, रंक लखा सोइ भूप॥
सिख का माना सतगुरू गुरु झिड़कै लख बार 'सहजो' द्वार न छोड़िये यही धारना धार
गुरु पग निश्चै परसिये गुरु पग हृदय राख 'सहजो' गुरुपग ध्यान करि गुरु बिन और न भाख
हरि करिपा जो होय तो नाहिं होय तो नाहिं पै गुरु किरपा दया बिनु सकल बुद्धि बहि जाहिं
निर्मल आनँद देत हौ ब्रह्म रूप करि देत जीव रूप की आपदा व्याधा सब हरि लेत
साध कहावै आप में चलै दुष्ट की चाल बाद लिये फूला फिरै बहुत बजावै गाल
अब तीरथ गुरु के चरन नित ही परवी होय 'सहजो' चरनोदक लिये पाप रहत नहिं कोय
सद्गुरुमहिमा - गुरु आज्ञा दृढ करि गहै गुरुमत सहजो चाल रोम रोम गुरु को रटै सो सिष होय निहाल
जो कछु करै तो मन दुखी मेटैं गुरु मुख रीत भेद वचन समझै नहीं चलै चाल विपरीत
गुरु हैं चारि प्रकार के अपने अपने अंग गुरु पारस दीपक गुरु मलयागिरि गुरु भृंग
परमहंस तारन तरन गुरु देवन गुरु देव अनुभै वाणी दीजिये सहजो पावै भेव
अड़सठ तीरथ गुरु चरण परवी होत अखंड 'सहजो' ऐसो धाम ना सकल अंड ब्रह्मंड
गुरू वचन हियरे धरै ज्यों किर्पिन के दाम भूमि गड़े माथे दिये 'सहजो' लहै तो राम
गुरु अज्ञा मानै नहीं गुरुहिं लगावें दोष गुरु निंदक जग में दुखी मुये व पावै मोष
सद्गुरुमहिमा - कर जोरूं प्रणाम कारि धरूँ चरन पर सीस दादा गुरु सुखदेव जी पूरण विश्वा बीस
सद्गुरुमहिमा - चरनदास समरथ गुरु सर्व अंग तिहिमाहिं जैसे को तैसा मिलै रीता छाँड़ै नाहिं